भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा- 25 क्या है?

नमस्कार ! राष्ट्र की बात के साथ मैं हूँ विश्राम सिंह यादव। आज राष्ट्र की बात में मैं करेंगे भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आने वाली IPC की धारा के बारे में कि आईपीसी धारा 325 क्या है, (IPC Section 325 in Hindi), ये धारा कब लगती है? इस अपराध मामले में सजा और जमानत कैसे मिलती है। यदि आप इस धारा के बारे में विस्तृत जानकारी जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
अक्सर लड़ाई झगड़े जैसे अपराधों के कारण दो पक्षों में से किसी एक पक्ष को गंभीर चोट (Serious injury) लग जाती है और चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति कानूनन अपराधी बन जाता है। ऐसे अपराध (Crime) करने वाले व्यक्ति को किस प्रकार की कानूनी कार्यवाही (Legal Process) से गुजरना पड़ता है। हम आज के लेख द्वारा इस बात पर चर्चा करेंगे।


IPC Section 325 in Hindi / आईपीसी धारा 325 क्या है?
आईपीसी की धारा- 325 के अनुसार धारा- 335 द्वारा बताए गए मामले को छोड़कर यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक (Voluntarily) यानी खुद की इच्छा से किसी भी प्रकार की गंभीर चोट पहुंचाता है। ऐसा अपराध करने वाले व्यक्ति पर IPC Section- 325 के तहत मुकदमा दर्ज (Court Case Register) कर कार्यवाही की जाती है।

आइये इसे सरल भाषा में जानने का प्रयास करते हैं।यदि कोई भी व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति पर इस प्रकार से प्रहार करता है या हमला (Attack) करता है। जिसकी वजह से उस व्यक्ति को गंभीर चोट (Serious injury) लग जाती है। उस स्थिति में पुलिस द्वारा धारा 325 का इस्तेमाल किया जाता है। यदि आरोपी को न्यायालय (Court) द्वारा दोषी (Guilty) करार दिया जाता है तो उसे IPC 325 के तहत सजा (Punishment) व जुर्माने (Fine) से दंडित किया जाता है।

धारा 325 के तहत गंभीर चोट क्या है?
भारतीय दंड संहिता द्वारा “गंभीर चोट” शब्द को परिभाषित करते हुए बताया गया है, जिसमें ऐसी चोटें शामिल हैं जो किसी व्यक्ति के जीवन को खतरे में डालती है व गंभीर शारीरिक दर्द (Physical pain) का कारण बनती हैं, या शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य (Mental health) को नुकसान पहुंचाती हैं। जैसे कि फ्रैक्चर (Fracture), विकृति (Deformity), अंग या दृष्टि की हानि, स्थायी विकलांगता (Permanent Disability), या कोई चोट जिससे मृत्यु (Death) होने

IPC Section 325 कब लगती है – मुख्य तत्व
यहां आईपीसी धारा 325 के महत्वपूर्ण तत्व हैं:

स्वैच्छिक रुप से (खुद की इच्छा से):- गंभीर चोट पहुंचाने का कार्य जानबूझकर और इस ज्ञान के साथ किया जाना चाहिए कि इससे पीड़ित को गंभीर नुकसान होने की संभावना है।
गंभीर चोट: गंभीर चोट शारीरिक चोट के एक गंभीर रूप के बारे में बताती है, जो पीड़ित को बहुत दर्द या नुकसान पहुंचाती है। इसमें टूटी हुई हड्डियाँ (Broken bones), कुरूपता (ugliness), अंग की हानि (Loss of limb), बिगड़ा हुआ अंग कार्य आदि जैसी चोटें (injuries) शामिल हैं। इस अपराध के लिए होने वाली हानि एक साधारण चोट से अधिक होनी चाहिए।
संभावना का ज्ञान: नुकसान पहुँचाने वाले व्यक्ति को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि उनके द्वारा किए गए कार्यों से दूसरे व्यक्ति को गंभीर चोट लगने की संभावना है। दूसरे शब्दों में कहे तो उन्हें अपने कार्यों के द्वारा होने वाले परिणामों के बारे में पता होना चाहिए।

यदि ये सभी आवश्यक बातें किसी अपराध को करने में पाईं जाती है, तो उस व्यक्ति पर IPC 325 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

आईपीसी सेक्शन 325 के अपराध का उदाहरण
एक बार राहुल नाम का एक लड़का होता है। एक दिन एक व्यक्ति राहुल के पास आता है और उसके साथ झगड़ा करने लगता है। राहुल उससे अपना बचाव करने की कोशिश करता है परन्तु वो व्यक्ति राहुल को चोट पहुँचाने के इच्छा से हमला करता है। जिस कारण राहुल के सिर में चोट लग जाती है।

उसके बाद आस-पास के लोगों द्वारा राहुल को हॉस्पिटल में ले जाया जाता है। राहुल उस व्यक्ति की शिकायत पुलिस में कर देता है। पुलिस राहुल की शिकायत उस व्यक्ति के खिलाफ स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाने की ipc 325 के तहत शिकायत दर्ज कर कार्यवाही करती है।

धारा 325 में सजा – Punishment in IPC 325
भारतीय दंड संहिता की धारा 325 में सजा के प्रावधान अनुसार यदि कोई व्यक्ति खुद की इच्छा से किसी अन्य व्यक्ति पर हमला करता है। जिस कारण उस व्यक्ति को गंभीर चोट लग जाती है। ऐसा Crime करने के कारण उस व्यक्ति के खिलाफ पीड़ित (Victim) व्यक्ति की शिकायत पर Police द्वारा कार्यवाही की जाती है। जिसमें आरोपी को Court में पेश किया जाता है। यदि आरोपी न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाता है तो IPC 325 ते तहत दोषी व्यक्ति को 7 वर्ष तक की कारावास (Imprisonment) व जुर्माने से दंडित किया जा सकता

धारा 325 में जमानत – IPC 325 bailable or not?
IPC की धारा 325 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय श्रेणी का अपराध माना जाता है। यह एक जमानतीय अपराध (Bailable offence) होता है। इस धारा के तहत जब आरोपी व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार (Arrest) कर न्यायालय में पेश किया जाता है तब आरोपी व्यक्ति का वकील (Lawyer) न्यायालय द्वारा जमानत (Bail) आसानी से ले सकता है।

इस केस में भी आपको अन्य मामलों की तरह एक वकील की जरुरत पड़ती है। जो आपकी गिरफ्तारी होने के बाद आपको जमानत दिलाने के लिए सारी कानूनी कार्यवाही करेगा व आपको कानूनी सलाह (Legal Advice) भी देंगा। इसलिए इस तरह के मामलों में जमानत के लिए सबसे पहले किसी काबिल वकील का चुनाव

IPC की धारा 325 के तहत शिकायत दर्ज कैसे करें?
इस प्रकार के अपराध के लिए यदि आप शिकायत दर्ज (Complaint Register) कराना चाहते है तो कुछ जरुरी बातें हम आपको बताएंगे, लेकिन एक बार किसी लॉयर या कानूनी सलाहकार (Legal advisor) से परामर्श जरुर ले।

जानकारी इकट्ठा करें: घटना के बारे में सभी आवश्यक जानकारी एकत्र करें, जैसे कि अपराध की तारीख, समय और स्थान, शामिल व्यक्तियों के नाम और पते, और कोई भी सहायक सबूत जैसे मेडिकल रिपोर्ट, फोटोग्राफ, या गवाह (Witness) के बयान।
पुलिस से संपर्क करें: उस नजदीकी पुलिस स्टेशन जाए जहां यह अपराध हुआ है। आप वहाँ जाकर एक लिखित शिकायत दर्ज कर सकते हैं, जिसे प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के रूप में भी जाना जाता है।
शिकायत दर्ज करें: यदि आप लिखित में शिकायत दर्ज कर रहे हैं, तो उसे पुलिस अधिकारी की मदद से या सादे कागज पर तैयार करें। जिसमें सभी जरुरी बातें जैसे आपका नाम, पता, संपर्क जानकारी और घटना का वर्णन सभी शामिल करें। उसके बाद अपनी शिकायत पर हस्ताक्षर करें और तारीख डालें।
प्राथमिकी दर्ज करना: पुलिस आपकी शिकायत दर्ज करेगी और आपको प्राथमिकी की एक प्रति प्रदान करेगी। आपके लिए आगे की कानूनी कार्यवाही (Legal process) के लिए यह दस्तावेज़ महत्वपूर्ण है, इसलिए इसे संभाल के रखे।
जांच: इसके बाद पुलिस शिकायत और प्राथमिकी के आधार पर जांच (Investigation) शुरू करेगी। वे अतिरिक्त साक्ष्य (Extra Evidence) एकत्र कर सकते हैं, गवाहों के बयान दर्ज कर सकते हैं।
चिकित्सा परीक्षण: यदि आपको चोटें लगी हैं, तो सबसे पहले आपको चिकित्सा परीक्षण (Medical Examination) कराने की सलाह दी जाती है। मेडिकल रिपोर्ट आपके केस में गंभीर चोट के महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में काम करेगी।
कानूनी कार्यवाही: एक बार जांच पूरी हो जाने के बाद Police मामले को उपयुक्त अदालत में जमा करेगी। अदालत सुनवाई का समय तय करेगी और दोनों पक्षों द्वारा पेश किए गए सबूतों और तर्कों के आधार पर मुकदमे को आगे बढ़ाएगी।
कानूनी प्रतिनिधित्व: आपराधिक कानून (Criminal Law) में विशेषज्ञता रखने वाले वकील को नियुक्त करके कानूनी प्रतिनिधित्व प्राप्त करना उचित है। वे आपको कानूनी प्रक्रिया को समझाने व आपके मामले को प्रभावी ढंग से पेश करने और आपके अधिकारों की रक्षा करने में मदद करेंगे।
धारा 325 मामलों में मेडिकल साक्ष्य की क्या भूमिका है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 325 मामलों में मेडिकल साक्ष्य की भूमिका इस प्रकार है:

चोटों की प्रकृति और सीमा की स्थापना: चिकित्सा रिपोर्ट, प्रमाण पत्र और विशेषज्ञ गवाही सहित चिकित्सा साक्ष्य, पीड़ित व्यक्ति को लगी चोटों की गंभीरता और सीमा का फैसला करने में मदद करता है।
पीड़ित के बयान की पुष्टि करना: चिकित्सकीय साक्ष्य (Medical Evidence) चोटों लगने के कारण के बारे में पीड़ित के बयान की पुष्टि कर सकते हैं। यह इस बात को निर्धारित करने में मदद करता है कि चोटें कथित अपराध के अनुरूप हैं या नहीं।
अभियुक्त के इरादे और ज्ञान का निर्धारण: इसके द्वारा अभियुक्त के इरादे और ज्ञान को निर्धारित करने में सहायता कर सकता है। उदाहरण के लिए, चोटों का स्थान, प्रकार और गंभीरता यह संकेत दे सकती है कि क्या अभियुक्त गंभीर चोट पहुंचाने का इरादा रखता है या उसे पता था कि उनके कार्यों से ऐसी हानि होने की संभावना है।
अपराध की गंभीरता का आकलन: चिकित्सा साक्ष्य के माध्यम से दर्ज की गई चोटों की गंभीरता धारा 325 के तहत उचित सजा का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अदालत नुकसान की सीमा पर विचार करती है और यदि चोटें विशेष रूप से गंभीर हैं तो अधिक गंभीर जुर्माना लगा सकती हैं। .
विशेषज्ञ गवाही: चिकित्सा पेशेवर, जैसे डॉक्टर और फोरेंसिक विशेषज्ञ, पीड़ित और मेडिकल रिकॉर्ड के आधार पर अदालत में विशेषज्ञ के रुप में अपनी गवाही दे सकते हैं। उनकी गवाही चिकित्सा साक्ष्य को अच्छे से बताने व समझाने में मदद कर सकती है।
लेकिन इस प्रकार के Crimes को साबित करने के लिए केवल Medical Evidence ही काफी नहीं होते, न्यायालय द्वारा अन्य सभी बातों व सबूतों के आधार पर ही फैसला लिया जाता है। हालांकि ये बात बिल्कुल सही है कि मेडिकल साक्ष्य के द्वारा इस प्रकार के अपराधों में काफी मदद हो जाती

IPC Section 325 के मामलों में उपलब्ध बचाव
इस धारा में बचाव के लिए आपके पास नीचे दी गई किसी बात का होना जरुरी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आपको कोई भी सजा नहीं मिलेगी। आपने किसी भी कारण से किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाया है तो सजा तो आपको होगी। परन्तु सजा को थोड़ा कम किया जा सकता है।

संपत्ति की निजी रक्षा: आत्मरक्षा (Self defence) के समान यदि अभियुक्त (Accused) यह साबित कर सकते हैं कि किसी गैरकानूनी घुसपैठ या क्षति से अपनी संपत्ति का बचाव करते हुए उन्होंने सामने वाले व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाई है तो।
दुर्घटना: यदि आरोपी व्यक्ति यह साबित कर सके कि गंभीर चोट पहुँचाने वाला कार्य आकस्मिक था और किसी भी प्रकार से जानबूझकर नहीं किया गया था या किसी गलत इरादे से नही किया गया था ये केवल एक दुर्घटना (Accident) थी।
पागलपन: यदि अभियुक्त यह साबित कर दे कि Crime को करने के समय वे किसी मानसिक बीमारी (Mental illness) या दोष से पीड़ित थे, तो भी बचाव हो सकता है। लेकिन झूठ बोलकर ऐसा करना आपको न्यायालय से सजा दिलवा सकता है, इसलिए अगर आप सच में अपराध के समय किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित थे तो ही ऐसी बातें न्यायालय के सामने प्रस्तुत करें।
गंभीर चोट पहुँचाने का कोई इरादा नहीं होना: यदि अभियुक्त यह साबित कर दे कि पीड़ित को गंभीर चोट पहुँचाने का उनका कोई इरादा (Intention) नहीं था और यह कि नुकसान पहुँचाने का कार्य अनजाने में या आकस्मिक था तो भी आप का इस प्रकार के मामलों में Defe
धारा 325 में अपराध से बचने के लिए सावधानियां
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाने के इरादे से अपराध करता है तो वह कानून की नजरों में दोषी बन जाता है। किसी भी व्यक्ति को ऐसा कोई भी अपराध करने से पहले अपने साथ-साथ अपने परिवार पर आने वाली परेशानियों के बारे में सोचना चाहिए। कुछ जरुरी सावधानी व बचाव के तरीकों को जानकर इस प्रकार के अपराधों को करने से बचा जा सकता है। चलिए जानते है इस धारा में बचाव की कुछ आवश्यक बातों के बारे में।

यदि कोई व्यक्ति आपको परेशान करता है या आपको गुस्सा दिलाने की कोशिश करता है तो ऐसे व्यक्ति से दूर रहे।
किसी भी ऐसे व्यक्ति के साथ ना रहे जिससे आपको किसी भी प्रकार का नुकसान होने का भय रहता हो।
यदि कभी भी किसी भी कारण से आपका झगड़ा हो जाता है तो सामने वाले व्यक्ति पर इस तरह से कभी भी हमला ना करें। जिसकी वजह से उसको गंभीर चोट लगने का भय बन जाए।
अपने किसी भी मित्रों के साथ जानबूझकर ऐसा कोई भी मजाक ना करें जिसकी वजह से उन्हे किसी भी प्रकार की गंभीर चोट लग जाए।
यदि आपकी वजह से किसी को चोट लग जाती है और आपके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। उस स्थिति में सबसे पहले किसी वकील की मदद ले।
यदि आप पुरी तरह धारा 325 के केस से निकलना चाहते है तो न्यायालय से अनुमति लेकर अपने वकील की सहायता से पिड़ित पक्ष से बात कर आपसी समझौता करने की कोशिश करें।
भविष्य में इस तरह के अपराध को करने से बचे व अपने आस-पास के लोगों को भी इस प्रकार के अपराधों से बचाव के बारे में जागरुक करें।
Offence : स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाई

Punishment : 7 साल + जुर्माना

Cognizance : संज्ञेय

Bail : जमानतीय

Triable : कोई भी मजिस्ट्रेट

लेखक:
विश्राम सिंह यादव

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