सीता स्वयंवर भारतीय महाकाव्य रामायण की एक अत्यंत रोचक और प्रमुख घटना है। यह कथा न केवल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और माता सीता के मिलन की कहानी है, बल्कि यह धर्म, न्याय, और मर्यादा का भी प्रतीक है। यह कथा त्रेता युग में घटित होती है, जब भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ एक महायज्ञ के निमित्त जनकपुरी पहुंचे थे।
जनकपुरी और राजा जनक का संकट
जनकपुरी मिथिला राज्य की राजधानी थी, और इसके राजा जनक एक धर्मनिष्ठ, ज्ञानी और न्यायप्रिय शासक थे। सीता, राजा जनक की दत्तक पुत्री थीं, जिन्हें उन्होंने अपनी भक्ति और तपस्या के परिणामस्वरूप पाया था। कथा के अनुसार, एक बार राजा जनक अपने राज्य में यज्ञभूमि तैयार कर रहे थे, तब उन्हें धरती से एक कन्या प्राप्त हुई। इस अद्भुत कन्या का नाम सीता रखा गया।
सीता अत्यंत सुंदर, गुणवान और दिव्य तेजस्वी थीं। उनकी सुंदरता और गुणों की चर्चा दूर-दूर तक फैल चुकी थी। जब सीता विवाह योग्य आयु तक पहुंचीं, तो राजा जनक को चिंता हुई कि कौन ऐसा वीर और योग्य वर होगा, जो उनकी पुत्री से विवाह कर सके।
शिव धनुष और स्वयंवर का आयोजन
राजा जनक के राजकोष में भगवान शिव का एक दिव्य धनुष रखा हुआ था, जिसे 'पिनाक' के नाम से जाना जाता था। यह धनुष इतना भारी और शक्तिशाली था कि सामान्य मनुष्यों के लिए इसे उठाना असंभव था। राजा जनक ने यह घोषणा की कि जो भी इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही सीता से विवाह करेगा।
यह घोषणा पूरे आर्यावर्त में फैल गई। विभिन्न राज्यों के राजकुमार, राजा और वीर योद्धा इस चुनौती को स्वीकार करने जनकपुरी पहुंचे। स्वयंवर सभा के लिए भव्य आयोजन किया गया। सभा में सीता को देखने के लिए हजारों लोग भी एकत्रित हुए।
विश्वामित्र का मिथिला आगमन
उसी समय, गुरु विश्वामित्र अपने शिष्यों राम और लक्ष्मण के साथ तपस्या के लिए वन में निवास कर रहे थे। उन्होंने राम और लक्ष्मण को धर्म, नीति और शस्त्रों का गहन ज्ञान दिया था। एक दिन विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को बताया कि मिथिला में एक महान स्वयंवर का आयोजन हो रहा है। वे उन्हें अपने साथ लेकर जनकपुरी पहुंचे।
जब राम और लक्ष्मण जनकपुरी पहुंचे, तो उनकी तेजस्विता और मर्यादा देखकर सभी लोग मोहित हो गए। विशेष रूप से सीता ने राम को देखकर अपने मन में यह निश्चय कर लिया कि वे ही उनके स्वामी बनेंगे।
स्वयंवर सभा का आरंभ
स्वयंवर सभा का आयोजन अत्यंत भव्य और दिव्य था। राजा जनक ने सभा के मध्य में शिव धनुष को रखा और अपनी घोषणा दोहराई। सभा में उपस्थित कई राजा और योद्धाओं ने धनुष को उठाने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी इसमें सफल नहीं हुआ।
कुछ राजाओं ने तो धनुष को थोड़ा हिला पाने का भी प्रयास किया, लेकिन धनुष की भारीता और दिव्यता के सामने सभी असफल हो गए। कुछ राजाओं ने अपनी हार स्वीकार कर ली, जबकि कुछ ने क्रोध में आकर राजा जनक को अपमानित करने का प्रयास किया।
राजा जनक निराश होकर बोले, "क्या धरती पर ऐसा कोई वीर नहीं है, जो इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा सके? यदि ऐसा ही रहा, तो मेरी पुत्री अविवाहित ही रह जाएगी।"
गुरु विश्वामित्र का आदेश
राजा जनक की यह बात सुनकर गुरु विश्वामित्र ने राम की ओर देखा और उन्हें शिव धनुष के पास जाने का आदेश दिया। राम ने गुरु की आज्ञा को सिर माथे पर रखा और धनुष की ओर बढ़े।
राम ने बड़े ही विनम्रता और मर्यादा के साथ शिव धनुष को प्रणाम किया। फिर अपने दोनों हाथों से धनुष को उठाया। सभा में सभी लोग यह देख कर चकित रह गए कि राम ने धनुष को कितनी सहजता से उठा लिया।
धनुष का टूटना
राम ने धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास किया। जैसे ही उन्होंने प्रत्यंचा खींची, शिव धनुष दो भागों में टूट गया। धनुष टूटने की ध्वनि इतनी तेज थी कि पूरा जनकपुरी हिल गया। यह घटना अद्भुत और अलौकिक थी।
शिव धनुष के टूटने के बाद राजा जनक और सभा के सभी सदस्य अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने राम को अपनी पुत्री सीता के योग्य वर के रूप में स्वीकार किया। सीता ने भी अपने मनोहर भाव से राम को वरमाला पहनाने की स्वीकृति दी।
राम और सीता का मिलन
सीता ने अपने हाथों में वरमाला लेकर राम के पास आईं और उन्हें अपने स्वामी के रूप में चुना। राम ने भी अपनी मर्यादा और विनम्रता के साथ सीता को स्वीकार किया। इस मिलन को देखकर सभी देवता, ऋषि और राजा प्रसन्न हुए।
यह मिलन केवल एक पति-पत्नी का संबंध नहीं था, बल्कि यह धर्म और प्रेम का प्रतीक था। राम और सीता के मिलन ने यह संदेश दिया कि सच्चा प्रेम और सच्ची योग्यता समय आने पर एक-दूसरे को अवश्य प्राप्त होती है।
लक्ष्मण की भूमिका
इस कथा में लक्ष्मण की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। जब कुछ राजाओं ने अपनी हार के बाद जनक को अपमानित करने का प्रयास किया, तो लक्ष्मण ने अपने तेजस्वी स्वभाव के साथ उनका प्रतिकार किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि राम के होते हुए कोई जनक या सीता का अपमान नहीं कर सकता।
स्वयंवर का समापन
स्वयंवर के समापन के बाद राजा जनक ने पूरे मिथिला में इस शुभ अवसर का उत्सव मनाया। राम और सीता के विवाह के लिए राजा दशरथ को संदेश भेजा गया। अयोध्या से राजा दशरथ अपने परिवार और मंत्रियों के साथ मिथिला पहुंचे।
राम और सीता का विवाह केवल व्यक्तिगत संबंध का नहीं, बल्कि दो महान राज्यों, अयोध्या और मिथिला, के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक था। यह विवाह भारतीय संस्कृति में विवाह के आदर्श को प्रस्तुत करता है।
कथा का संदेश
सीता स्वयंवर की यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्रेम और समर्पण किसी भी बाधा को पार कर सकता है। राम और सीता का मिलन केवल एक दैवीय घटना नहीं, बल्कि यह धर्म, कर्तव्य और मर्यादा का प्रतीक है।
यह कथा आज भी भारतीय समाज में एक आदर्श के रूप में स्थापित है और यह दिखाती है कि सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को हमेशा सफलता मिलती है।
लेखक:
विश्राम सिंह यादव
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