प्रस्तावना
16 अगस्त 2025 को सम्पूर्ण भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में रहने वाले हिंदू समाज एवं आस्तिक जन भगवान श्रीकृष्ण का पावन जन्मोत्सव मनाएंगे। यह दिन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि धर्म की पुनर्स्थापना, प्रेम और करुणा की विजय, और जीवन को सही दिशा देने वाले संदेशों का उत्सव है।
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, मध्यरात्रि को कारागार की अंधेरी कोठरी में हुआ। यह संयोग केवल ऐतिहासिक घटना नहीं बल्कि प्रतीकात्मक सत्य है – कि जब-जब जीवन अंधकारमय हो जाता है, तब-तब प्रकाश रूप में भगवान अवतरित होते हैं।
1. श्रीकृष्ण जन्म की कथा
मथुरा के अत्याचारी राजा कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को कारागार में डाल दिया था, क्योंकि एक आकाशवाणी हुई थी – "हे कंस, तुम्हारा अंत देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगा।"
कंस ने देवकी के छह पुत्रों की हत्या कर दी, सातवाँ गर्भ योगमाया के प्रभाव से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित होकर बलराम रूप में प्रकट हुआ। और आठवें गर्भ से भाद्रपद की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
कारागार की कोठरी में जन्म लेने के बाद, चमत्कार से सभी पहरेदार सो गए, बेड़ियाँ खुल गईं, और दरवाज़े स्वयं खुल गए। वसुदेव ने नवजात कृष्ण को लेकर यमुना पार गोकुल में नंद-यशोदा के घर पहुँचा दिया। वहीं से श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं का प्रारंभ हुआ।
2. बाल लीलाएँ और उनका संदेश
माखन-चोरी और ग्वाल-बाल संग खेल
श्रीकृष्ण बचपन से ही नटखट और चंचल थे। वे माखन चुराते, गोपियों को छेड़ते और ग्वाल-बालों संग गाय चराते। यह लीलाएँ हमें बताती हैं कि जीवन में आनंद और निष्कपटता का कितना महत्व है।
कालिया नाग का दमन
यमुना नदी में ज़हरीले कालिया नाग का वास था। कृष्ण ने बाल्यावस्था में ही उस नाग पर नृत्य कर उसे वश में किया और नदी को प्रदूषण मुक्त किया। यह लीला हमें सिखाती है कि साहस और निडरता से हर विषैली समस्या का समाधान संभव है।
गोवर्धन धारण
इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और गोकुलवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाया। यह घटना सामूहिक सहयोग और नेतृत्व की मिसाल है।
रासलीला और प्रेम का संदेश
गोपियों संग रासलीला केवल भौतिक प्रेम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। कृष्ण का बांसुरी वादन आज भी भक्ति और प्रेम का आह्वान करता है।
3. महाभारत और गीता का उपदेश
श्रीकृष्ण का सबसे महान योगदान श्रीमद्भगवद्गीता है। महाभारत युद्धभूमि में अर्जुन जब मोह और भ्रम में पड़ गए, तब कृष्ण ने उन्हें ज्ञान देकर कर्तव्य पथ पर अग्रसर किया।
कर्म का सिद्धांत: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” – हमें कर्म करना चाहिए, फल की चिंता भगवान पर छोड़ देनी चाहिए।
योग का महत्व: योग से मन, बुद्धि और आत्मा को संयमित करना चाहिए।
धर्म की रक्षा: “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…” – जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब भगवान अवतरित होंगे।
गीता का यह संदेश केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं, बल्कि आज भी जीवन की हर कठिनाई में मार्गदर्शन देता है।
4. जन्माष्टमी पर्व की परंपराएँ
भारतवर्ष में जन्माष्टमी बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है।
झूलन उत्सव: मंदिरों में नन्हें बालकृष्ण को झूले में बैठाकर सजाया जाता है।
उपवास और व्रत: भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और रात्रि को कृष्ण जन्म का उत्सव मनाते हैं।
दही-हांडी उत्सव: महाराष्ट्र व उत्तर भारत में गोविंदा टोली मिलकर दही-हांडी फोड़ती है। यह साहस, सामूहिकता और उत्साह का प्रतीक है।
जागरण और भजन-कीर्तन: पूरी रात भक्तजन श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं।
5. श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ और समाज
आज के दौर में जब समाज में संघर्ष, अशांति और असमानता है, श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ और भी प्रासंगिक हो जाती हैं।
साहस और निडरता: कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य रखना।
प्रेम और करुणा: सबमें ईश्वर को देखना और सबके साथ समान व्यवहार करना।
धर्म और न्याय: अन्याय का विरोध करना और धर्म की रक्षा करना।
नेतृत्व और कूटनीति: राजनीति को धर्म से जोड़कर समाज का मार्गदर्शन करना।
6. आधुनिक युग में जन्माष्टमी का महत्व
आज के युग में जन्माष्टमी हमें कई प्रेरणाएँ देती है—
युवाओं को श्रीकृष्ण की तरह साहसी और नेतृत्वशील होना चाहिए।
गीता के उपदेश आधुनिक जीवन की समस्याओं का समाधान देते हैं।
यह पर्व हमें सामूहिकता, सहयोग और भाईचारे की भावना सिखाता है।
समाज में भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की प्रेरणा देता है।
7. विश्वभर में जन्माष्टमी का उत्सव
केवल भारत ही नहीं, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, मॉरीशस, नेपाल, बांग्लादेश और कई देशों में जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस्कॉन मंदिरों में विशेष रूप से भव्य आयोजन होते हैं जहाँ हज़ारों लोग एकत्र होकर श्रीकृष्ण नाम संकीर्तन करते हैं।
8. श्रीकृष्ण और भारतीय संस्कृति
भारतीय संस्कृति का आधारभूत स्तंभ श्रीकृष्ण हैं। उनका चरित्र हमें बताता है कि जीवन केवल तपस्या नहीं, बल्कि आनंद और कर्तव्य का संतुलन है।
वे योगी भी हैं और भोगी भी।
वे राजनीति के कुशल ज्ञाता भी हैं और प्रेम के आदर्श भी।
वे सैनिक भी हैं और साधक भी।
9. शुभकामना संदेश
इस पावन अवसर पर हम सब यही प्रार्थना करते हैं—
हर घर में आनंद और समृद्धि आए।
हर मन में भक्ति और प्रेम का संचार हो।
भारतवर्ष पुनः विश्वगुरु बने और श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ जन-जन तक पहुँचे।
“16 अगस्त 2025 की जन्माष्टमी आप सभी के जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह और सुख-समृद्धि का संचार करे।
जय श्रीकृष्ण! राधे-राधे!!”
उपसंहार
श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक आदर्श जीवन दर्शन है। यह हमें साहस, करुणा, कर्तव्य और धर्म का पाठ पढ़ाता है। इस जन्माष्टमी पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में गीता के संदेशों को आत्मसात करेंगे और एक बेहतर समाज का निर्माण करेंगे।
लेखक:
विश्राम सिंह यादव
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