"क्या पुलिस जनता की रक्षक है या डर का कारण? पढ़िए चौंकाने वाला सच!

नमस्कार! राष्ट्र की बात के साथ में हूं विश्राम सिंह यादव। राष्ट्र की बात में आज हम जनता बनाम पुलिस की कहानी प्रस्तुत करेंगे।

क्या पुलिस जनता की रक्षक है या डर का कारण? पढ़िए चौंकाने वाला सच!"

  1. "D.K. Basu गाइडलाइंस: क्यों सुप्रीम कोर्ट के आदेश आज भी धरे के धरे हैं?"
  2. "पुलिस सुधार की ज़रूरत: इंसाफ की गूंज आखिर कब सुनी जाएगी?"
  3. "मानवाधिकार बनाम पुलिसिया ज्यादती – न्याय की डगर कितनी कठिन?"
  4. "जनता के हक़ की लड़ाई: क्यों उठ रही है D.K. Basu नियम लागू करने की मांग?"
  5. "पुलिस और इंसाफ के बीच की खाई – क्या कभी पाटी जाएगी?"
  6. "जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश ही न माने जाएं तो आम जनता किस पर भरोसा करे?"
  7. "पुलिस सुधार आंदोलन: क्या देश बदलने जा रहा है?"
  8. "काग़ज़ों पर इंसाफ, ज़मीनी हक़ीक़त में अन्याय – जानिए पूरी कहानी"
  9. "पुलिस की मनमानी रोकने का आख़िरी उपाय: क्या D.K. Basu ही है समाधान?

"न्याय की पुकार : मोहिनी कामवानी की लड़ाई और D.K. Basu कानून का उल्लंघन"



भारत का लोकतंत्र और संविधान हमें यह भरोसा दिलाते हैं कि कानून सबके लिए समान है। लेकिन जब वही कानून जनता के रक्षक कहलाने वाले पुलिस अधिकारियों द्वारा तोड़ा जाता है और फिर भी उन्हें दंड नहीं मिलता, तब यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या हमारा लोकतंत्र सच में सबके लिए बराबर है? ऐसी ही एक हृदयविदारक और साहस से भरी कहानी है 79 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी मोहिनी कामवानी जी की, जिन्होंने महाराष्ट्र पुलिस के कुछ अधिकारियों के खिलाफ न्याय की जंग छेड़ी।


नये कानून में कुछ 'नया' नहीं


सांविधानिक प्राधिकार बनाम संविधान

मामला और आरोप

मोहिनी जी और उनके परिवार के साथ जो हुआ, वह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे न्याय तंत्र की विफलता को उजागर करता है। मामला तब शुरू हुआ जब मोहिनी जी की शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाय पुलिस अधिकारियों ने खुद ही कानून की धज्जियाँ उड़ाईं। चार वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों – जावेद अहमद (अतिरिक्त DGP), वाशी DCP पुरुषोत्तम कराड, इंस्पेक्टर लक्ष्मण काले और इंस्पेक्टर रावसाहेब सरदेसाई – पर "सुप्रीम कोर्ट के 1997 वाले D.K. Basu कानून" का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप हैं। यहां तक कि मुंबई उच्च न्यायालय ने भी इन्हें दोषी ठहराया, लेकिन फिर भी इन्हें सज़ा नहीं दी गई।

राम चरित मानस एहि नामा रिक्स हिंदी

पुलिस को मिला अभयदान

सवाल यह है कि अगर एक आम नागरिक पर कोई आरोप लगता है तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है, तो फिर वही नियम पुलिस अधिकारियों पर क्यों लागू नहीं होता? इस मामले में यह साफ दिखाई देता है कि महाराष्ट्र प्रशासन ने मानो पुलिस को "अभयदान" दे दिया है। संदेश यह है – चाहे गलत गिरफ्तारी करो, झूठे मुकदमे दर्ज करो या किसी निर्दोष पर अत्याचार करो, तुम्हें कोई सज़ा नहीं मिलेगी, बल्कि तुम्हारे पदोन्नति तक के रास्ते खुलेंगे।

नए कानून में क्या है नए कानून में कितनी धाराएं हैं देखिए 👇

परिवार की दर्दनाक गाथा

इस लापरवाही और भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा खामियाज़ा मोहिनी जी के परिवार ने झेला। उनके स्वतंत्रता सेनानी पति स्व. नारायणदास जी को इतना गहरा आर्थिक और मानसिक आघात लगा कि वे कोमा में चले गए और चार दिनों में उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनका छोटा बेटा भी कोमा में चला गया और 21 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। एक बेटी ने आत्महत्या कर ली और दूसरी मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई। यह सब उस अन्याय और शोषण का नतीजा था जो पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत से हुआ।

संघर्ष और न्यायालय की लड़ाई

हार न मानते हुए मोहिनी जी और उनके बड़े बेटे दिलीप कामवानी जी ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। जब वकील धमकियों के कारण मुकदमा छोड़ने लगे, तब दिलीप जी ने खुद कानूनी किताबें पढ़कर मुकदमा लड़ा। उन्होंने अदालत में तर्क प्रस्तुत कर चारों पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिलवाया और अदालत ने 6 लाख रुपये मुआवज़े का आदेश दिया। लेकिन सबसे अहम बात यह रही कि दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ न तो कोई मुकदमा चला और न ही उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया गया।

सुप्रीम कोर्ट और CrPC 43 का सहारा

न्याय की इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए मोहिनी जी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और CrPC 43 के तहत अपने अधिकार का उपयोग करते हुए स्वयं दोषी पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार करने का निर्णय लिया। लेकिन सत्ता और प्रशासनिक तंत्र ने हर स्तर पर बाधाएँ खड़ी कीं। कभी उनके सोशल मीडिया अकाउंट ब्लॉक किए गए, कभी कार्यक्रम स्थगित कराया गया, और कभी नोटिस भेजकर डराने का प्रयास हुआ।

लोकतंत्र का असली मतलब

मोहिनी जी का कहना बिल्कुल सही है – अगर आम नागरिकों को दिया गया "नागरिकी गिरफ्तारी का अधिकार" सिर्फ दिखावे के लिए है, तो इसे संविधान से हटा देना चाहिए। वरना यह अधिकार केवल किताबों में नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में भी लागू होना चाहिए। न्याय का आधार बराबरी है, और अगर पुलिस अधिकारी दोषी साबित हो जाते हैं तो उन्हें भी उसी तरह सज़ा मिलनी चाहिए जैसे किसी आम नागरिक को मिलती है।


निष्कर्ष

यह लड़ाई सिर्फ मोहिनी कामवानी जी की नहीं, बल्कि हर उस नागरिक की है जो भ्रष्टाचार और अन्याय से पीड़ित है। यह हमें याद दिलाती है कि कानून जनता की सुरक्षा के लिए है, न कि कुछ ताकतवर लोगों के लिए ढाल बनने के लिए। लोकतंत्र की असली शक्ति जनता की आवाज़ में है और जब तक अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठती रहेगी, तब तक न्याय की उम्मीद भी जीवित रहेगी।

संगठन के पास मोहिनी कामवानी(79 वर्षीय) पत्नी स्व. नारायणदास जी(स्वतंत्रता सेनानी)(पताः 101, माऊली, 1st फ्लोर, A-विंग, प्लॉट नं. 29-सी, सेक्टर 4, वाशी, नवी मुंबई, महाराष्ट्र - 400703) का मामला आया है| पूरे मामले का विश्लेषण और विवेचना करने के बाद यह समझ आ रहा है, कि संबंधित मामले में चारों पुलिस अधिकारियों (1) जावेद अहमद, अतिरिक्त DGP, क़ानून व व्यवस्था, महाराष्ट्रा (2) वाशी DCP पुरुषोतम कराड (3) वाशी इंस्पेक्टर लक्ष्मन काले (4) इंस्पेक्टर रावसाहेब सरदेसाई ने "सुप्रीम कोर्ट के 1997 वाले D. K. Basu कानून" का पूर्ण रूप से उलंघन किया है साथ ही मुंबई उच्च न्यायालय के द्वारा भी इन्हें दोषी करार दिया गया है| हम यह जानते हैं कि अगर आम नागरिक के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज होती है तो उसे गिरफ्तार करके जाँच प्रक्रिया शुरू की जाती है। जाँच प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद मामला अदालत में देते हुये उसपर मुकदमा चलाया जाता है और अगर कोई आरोपी पुलिस अधिकारी अदालत द्वारा दोषी करार दे दिया जाता है, तो क्या उस अधिकारी के ऊपर मुकदमा चलाये जाने की परम्परा हमारे संविधान में नहीं है? अगर नहीं है, तो इसका मतलब साफ है, कि अगर "आम नागरिकों" को पुलिस अधिकारियों द्वारा निर्दोष होने के बाद भी गैर-कानूनी रूप से दोषी करार दिये जा सकने का रास्ता खुल जाता है(उसकी वजह चाहे कुछ भी हो जैसे विरोधी-पक्ष से रिश्वत लेकर निर्दोष को फँसाने के काम के लिये, दुश्मनी निकलवाने के लिये या कानून का डर दिखाकर हफ्ता वसूली करने के लिये) क्योंकि दोषी करार होने के बाद भी उन्हें(पुलिस अधिकारियों को) न तो सजा मिलती है, न ही मुकदमे में किसी प्रकार का व्यक्तिगत खर्च करना पड़ता है और न ही नौकरी जाने का उन्हें खतरा होता है।

मोहिनी कामवानी जी के मामले को देखने के बाद यह साफ समझ आ रहा है, कि पुलिस प्रशासन को एक तरीके से महाराष्ट्र प्रशासन द्वारा अभेय-दान दे दिया गया है जो एक तरीके से यह सन्देश देता है, कि आप लोग कुछ भी करो किसी भी निर्दोष को अपने वैयक्तिगत फायदे के लिये गिरफ्तार करो, Encounter करो या गुंडागर्दी करो आप का कुछ नहीं बिगड़ेगा और न ही आपको किसी प्रकार की कोई सज़ा दी जायेगी बल्कि हम आप के द्वारा किये जा रहे इस उत्कृष्ट कार्य के लिये आपका अभिनन्दन तो करेंगे ही साथ ही पदोन्नति भी देंगे।

हमारा संगठन ऐसे दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने का समर्थन करता है साथ ही हमारा संगठन मानव की आत्महत्या को समर्थन नहीं देता मगर उच्चाधिकारियों व जिम्मेदार प्रशासकीय अधिकारियों तक आवाज़ पहुँचाने के लिये अनशन को सहयोग देता है। हमारा संगठन मोहिनी कामवानी जी की लड़ाई के साथ खड़ा है।

आशा है, मामले की गंभीरता को समझा जायेगा और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही का लिखित आश्वासन जिम्मेदार प्रशासकीय महकमे द्वारा अवश्य दिया जायेगा। D.G.P. द्वारा आश्वासन-पत्र(दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे) तो अवश्य दिया गया था मगर अभी तक कार्यवाही शुरू नहीं हुई है।

एक आम आदमी Addl. Director General of Police को गिरफ्तार कर सकता है या करवा सकता है?

हमारे पूर्वज जब जंगलों में रहते थे और किसी भी प्रकार की सभ्यता का विकास नहीं हुआ था उस वक्त जंगल का कानून चलता था मतलब जिसमें जैसी क्षमता है(शारीरिक, मानसिक या आर्थिक) उसका उपयोग करके वह अपने दुश्मन का संहार करता था, उसका शोषण करता था बाद में अपना गुलाम बना लेता था। धीरे-धीरे सभ्यता विकसित होती चली गई इंसान ने अपने जीने के लिये कुछ आवश्यक कायदे कानून बनाना शुरू किये, जिससे वह बिना किसी भय व रूकावट के सुगमता व सरलता से जिन्दगी व्यतीत कर सके।

पहले यह कायदे-कानून छोटे-छोटे कबीलों में लोकप्रिय हुये बाद में यह कबीले आपस में मिलकर शहर के शहर बसाते चले गये और फिर देश बसाये। समय के अनुसार इंसान ने अपनी सुविधानुसार अपनी भलाई व जीवित रहने के लिये नियम, कायदे व कानून बनाये और कुछ अधिकार दरोगा या प्रबंधकों को दिये गये जिसका उपयोग कर वह नागरिकों को अनुशासन में रहने के लिये बाध्य कर सकें। इस सारी कायनात पर अगर हम दृष्टि डालें तो हमें नजर आयेगा कि जो भी कानून हमने बनाये हैं वह अपनी सुविधा के लिये बनाये हैं न कि किसी को "अंधी ताकत" देने के लिये, मगर कानून के कुछ रखवालों ने "इस ताकत" को अपनी खुद की ताकत मान लिया है और "इस ताकत" को अपने "खुद के स्वार्थ के लिये" व उन लोगों के लिये "जिनकी मेहरबानी(भ्रष्ट नेता व बाहुबली) से वे यह ताकत हासिल करते हैं" के उपयोग के लिये जी-जान से जुट गये हैं जिसका उदाहरण हम अपने देश में जगह-जगह देख सकते हैं।

पूरे देश की वह जनता जो सही मायने में दबंगों द्वारा शोषित होती हैं वह इस कदर पुलिस प्रशासन से आतंकित रहती है कि अगर कोई पुलिस की वर्दी पहने साधारण शख्स भी दिखाई दे जाये तो डर के मारे उनकी "घिग्घी" बंध जाती है और वे आतंकित होकर सोचने लगते हैं कि कहीं किसी ने हमारे खिलाफ झूठी शिकायत तो नहीं दर्ज कर दी जबकि वहीं पर यह दबंग, बाहुबली व अपराधी इस कदर कानून के खिलाड़ी होते हैं कि वे करते तो खुद अपराध हैं और मगर खुद ही जाकर पीड़ित के खिलाफ शिकायत कर देते हैं और मालुम पड़ता हैं कि पीड़ित को ही आरोपी बना दिया गया हैं जिससे पुलिस प्रशासन के नुमांइदों को मौका मिल जाता है पीड़ितों का शोषण करने के लिये और वे जम कर उनका शोषण करना शुरू कर देते हैं! इन नुमांइदों में दौलत की भूख इस कदर होती है कि वे मौका मिले तो जरूरत पड़ने पर "मरते हुये इंसान" की चमड़ी भी बेच खाये।

संगठन के पास ऐसा ही एक मामला आया है जिसमें मोहिनी कामवानी जी जिस मुजरिम के खिलाफ F.I.R. दर्ज करने वाशी पुलिस थाने गईं थी वहां उनकी F.I.R. तो दर्ज की नहीं गई, बल्कि बाद में आरोपी के द्वारा Underworld से उनको धमकियाँ दिलवाई गईं जिस नंबर से धमकी आई थी उसे आरोपी के नंबरो से मिलाया गया तो यह साबित हो गया कि आरोपी का संबंध धमकी देने वाले से हैं। मगर पुलिस की लापरवाही की वजह से आरोपी देश के बाहर चला गया और जब एक बार आया तो पुलिस प्रशासन से पूछने पर पुलिस ने बताया कि आरोपी जल्दी में था इसलिये पूना अपने आँफिस चला गया और इस वजह से उससे पूछ-ताछ नहीं हो पाई जबकि यहाँ देखा जाये तो एक साधारण नागरिक के खिलाफ कोई शिकायत करे तो उसे फौरन ही गिरफ्तार कर लिया जाता हैजबकि इस आरोपी के संबंध “Underworld” से हैं यह दिखाई देने के बाद भी उसे गिरफ्तार करना तो दूर पूछताछ के लिये भी बुलाने की हिम्मत नहीं हुई, मामले को संज्ञान में लाने के लिये गृह विभाग, राष्ट्रीय महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सभी जगह 30-40 पत्र भेजे गये उनके सहयोगात्मक रवैये के पत्र भी नवी मुंबई कमीश्नर को मिले मगर वाशी पुलिस ने कोई भी कार्यवाही नहीं की। यह परिवार आरोपी से कुछ इस कदर पीड़ित रहा है कि मोहिनी कामवानी जी के" स्वतंत्रता सेनानी पति स्व. नारायणदास जी" उस "आर्थिक कमी"(जो उनके बेटे की 15 वर्षों की कमाई और उनकी खुद की कमाई का पैसा था) की वजह से बीमार होकर कोमा में चले गये और चार दिनों में उनकी मृत्यु हो गई, जो उनसे Forgery करके लूटा गया था।

कोमा में जाने से पहले इन स्वतंत्रता सेनानी ने अपनी पत्नि मोहिनी कामवानी जी के पांव पकड़े थे और उनसे माफी माँगते हुये कहा कि "मुझे माफ कर देना मैंने तुम्हारे बेटों का पूरा पैसा भलमनसाहत व अपनी नादानी की वजह से लुटने दिया और तुम्हारे बेटों की जिन्दगी बर्बाद कर दी" इतना कहने के बाद वे कोमा में चले गये और चार दिनों में उनकी मृत्यु हो गई। 6 महीने के बाद यह सब देख कर छोटा बेटा भी 21 दिन कोमा में रहने के बाद मृत्यु को प्राप्त हुआ। इस सबसे निकलने के बाद मोहिनी जी के बड़े बेटे दिलीप कामवानी जी ने महाराष्ट्र सरकार के लिये मुफ्त Aids का कार्यक्रम सफलतापूर्वक किया और इस कार्यक्रम की सफलता के चर्चे मीड़िया और समाचार पत्रों में भी काफी हुए, इस सफलता को देखते हुये महाराष्ट्र पुलिस ने भी उनसे महाराष्ट्र पुलिस के लिये Aids का प्रोग्राम करने के लिये आग्रह किया जिस आग्रह को उन्होंने मानते हुये सफलतापूर्वक मुफ्त में इस कार्यक्रम को आयोजित किया जिसकी सफलता को आप इस वाक्य से समझ सकते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों व जवानों की पत्नियों ने कहा कि "आपने हमारी आँखें खोलकर हमारे परिवार को एक नई दिशा दी है अब हम अपने पतियों पर ध्यान देंगे" क्योंकि पुलिस विभाग में यह कहावत प्रचलित है कि "इन्हें सबकुछ मुफ्त में मिलता है खाना, पीना और Aids(क्योंकि "रेडलाईट एरिया" में भी उन्हें सब कुछ मुफ्त में प्राप्त होता है)।

इस परिवार की आर्थिक व मानसिक परेशानी की वजह से एक बेटी जिसकी शादी नहीं हो सकी थी, उसने बाद में काफी परेशान होकर आत्महत्या कर ली और दुसरी बेटी मानसिक रुप से विक्षिप्त हालात में है जो साथ में रहती है। जब किसी भी प्रकार की शिकायत पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं सुनी गई तो मोहिनी जी ने अनशन पर बैठने का फैसला किया, वहाँ पर सरकार से किसी भी प्रकार का सहयोगात्मक रवैया प्राप्त नहीं हुआ मगर उल्टा मोहिनी कामवानी और उनके बेटे को 26 जनवरी 2012 के दिन वाशी पुलिस ने गलत तरीके से उनके घर से गिरफ्तार कर लिया और किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता भी प्राप्त नहीं होने दी गई, बाद में वाशी अदालत में पेश कर के चार दिन के लिए हथकड़ी पहना कर जेल में भेज दिया गया। आखिर थक कर मोहिनी जी ने पुलिस प्रशासन व शासकीय महकमें के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय में Writ दाखिल करने का फैसला किया। जब उच्च न्यायालय में मुकदमा चला तो वकीलों को एक-एक करके धमका कर इनसे अलग करवा दिया गया जिससे कोई भी वकील इनका मामला लड़ने आगे नहीं आया। हर महीने में जज बदल दिये गये जिससे फैसला हो ही न सकें। आखिर मोहिनी जी के बेटे दिलीप कामवानी जी ने खुद मुकदमा लड़्ने का बीड़ा उठाया और कानूनी धारायें पढ़ कर मुकद्दमा लड़ने का प्रण किया। उन्हें मालूम पड़ा किसी भी मुकदमे में वकील अगर बहस कर रहा हो तो उसे ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट दिये जाते हैं जबकि आम नागरिक को अधिक से अधिक समय दिया जाता है। इनके मुकदमें में जज साहब ने इन्हें 1-1 घंटे तक बोलने दिया जिससे दिलीप जी ने चारों पुलिस अधिकारियों को दोषी करार करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जिसका परिणाम यह हुआ कि जब 13 जून 2013 को अंतिम फैसला आया तो चारों पुलिसवालों (1) जावेद अहमद, अतिरिक्त DGP, क़ानून व व्यवस्था, महाराष्ट्रा (2) वाशी DCP पुरुषोतम कराड (3) वाशी इंस्पेक्टर लक्ष्मन काले (4) इंस्पेक्टर रावसाहेब सरदेसाई, को दोषी करार दिया गया और मोहिनी जी व दिलीप जी को 6 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया मगर इस फैसलें में यह बात समझ नहीं आई कि सुप्रीम कोर्ट के “D. K. Basu 1997” क़ानून के हिसाब से ऐसे दोषी पुलिस अधिकारियों को निलम्बित करना है और उनपर उसी हाई कोर्ट को केस चलाना चाहिये, मगर ऐसा नहीं हुआ। पुरे भारतवर्ष की अदालतें 1977 से हर गैर कानूनी जेल के केस में यह कार्यवाही करती आ रही हैं क्यों की यह सुप्रीम कोर्ट का क़ानून है, जबकि मोहिनी जी के केस में इस फैसले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। दोषी पुलिस वालों को कोई सज़ा नहीं? यह फैसला देख कर मोहिनी जी बिफर पड़ीं और उन्होंने कहा कि इस देश में एक ही तरह के मामले में सिर्फ मुझ गरीब बुढ़िया को अलग फैसला देकर मेरे साथ नाइंसाफी क्यों की जा रही है? और उन्होंने कहा कि मैं अन्तिम साँस तक यह लड़ाई लडूँगी और तब तक चैन से नहीं बैठूँगी जब तक इन चारों दोषी पुलिस वालों को सुप्रीम कोर्ट के क़ानून के हिसाब से सज़ा नहीं मिल जाती।


फिर उन्होंने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया Special Leave Petition (SLP) के द्वारा। साथ में निश्चय किया कि वे CrP.C. 43 Criminal Procedure Act 1973 के तहत आम नागरिक के अधिकार का उपयोग करते हुये इन चारों पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार करते हुये नजदीकी पुलिस थाने में आवश्यक कागजी कार्यवाही करते हुये ले जायेंगी, इस कानूनी कार्यवाही को अंजाम देने के लिये उन्होंने 1 महीना पहले ही सभी संबंधित विभागों में पत्र भेजे जिसमें CM, DyCM, HM, DGP, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, सोनिया गांधी वगेरह, साथ में आज़ाद मैदान पुलिस को भी और तय किया कि 15 अगस्त को जावेद अहमद Addl. Director General of Police को उनके आँफिस से गिरफ्तार करके कोलाबा पुलिस स्टेशन के सुपुर्द करेंगी जिससे आगे की कार्यवाही कोलाबा पुलिस के अधिकारी अंजाम दें। जिसके लिये एक पत्र आज़ाद पुलिस स्टेशन में दिया गया जिसमें कहा गया कि हम सब आज़ाद मैदान में 15 अगस्त को 11 बजे इकट्ठे होंगे, (क्योंकि आज़ाद मैदान से पुलिस मुख्यालय तक मोर्चा नहीं ले जा सकते) इसलिये आज़ाद मैदान का कार्यक्रम खत्म करके सभी लोग पुलिस मुख्यालय अपने-अपने साधन से पहुँचेंगे। मगर इस पूरे कार्यक्रम को असफल करने के लिये मोहिनी जी का Facebook A/c. ब्लॉक करवा दिया गया जिससे ज्यादा लोग आज़ाद मैदान पहुँच नहीं पायें, आज़ाद मैदान में सभी को दरवाज़ा बंद करके रोक लिया गया और बाहर जाने नहीं दिया गया लगभग 4 घंटे के बाद जब यह लिखकर दिया गया कि हमारा आज़ाद मेदान का कार्यक्रम समाप्त हो गया है तब 4 घंटे बाद वहाँ से छोड़ा गया, जहाँ से सभी पुलिस मुख्यालय पहुँचे मगर वहाँ गेट के अन्दर नहीं जाने दिया गया और कहा गया कि साहब ऑफिस में नहीं हैं सबने पूछा कि उनके घर का पता दीजिये वो उच्च न्यायालय के दोषी करार दिये गये हैं और मोहिनी जी के भी दोषी हैं इसलिये मोहिनी जी उन्हें गिरफ्तार करेंगी और कोलाबा पुलिस स्टेशन ले जायेंगी। मोहिनी जी ने कहा कि अगर हम कानून का उल्लंघन कर रहे हैं तो आप हमें गिरफ्तार कर सकते हैं, नहीं तो हम यहां से जब तक नहीं जायेंगे जब तक पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार करके कोलाबा पुलिस स्टेशन नहीं ले जाते।

आखिर 1 घंटे बाद सभी को अन्दर बुलाया गया और फिर कोलाबा पुलिस के ACP और पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ के साथ मीटिंग की गई उन्होंने कहा कि साहब तो ऑफिस में नहीं हैं, आप हमें पत्र दे दीजिये। मोहिनी कामवानी जी ने कहा कि पत्र तो हम पहले भी कई बार दे चुके हैं, अब हमें action लेना है और उन्हें गिरफ्तार करना है। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि वे यहां नहीं हैं, तो मोहिनी जी ने कहा कि हम तो गिरफ्तार किये बिना नहीं जायेंगे, चाहे तो आप हमें गिरफ्तार कर लें, अगर आपको ऐसा लगता है कि हम कानून तोड़ रहे हैं तो आप हमें जो चाहें वो सज़ा दे सकते हैं। फिर पुलिस मुख्यालय में सभी को नाश्ता करवाया व चाय पिलवाई, उसके बाद हमारी तरफ से यह कहा गया कि आप हमें जावेद अहमद जी के घर का पता दीजिये हम कानूनी नियम CrP.C. 43 Criminal Procedure Act 1973 के आम नागरिक को मिले अधिकार के तहत दोषी पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार करने का हक रखते हैं, हम उन्हें गिरफ्तार करेंगे और नज़दीकी पुलिस थाने में बंद करेंगे। उन्होंने पता देने से मना किया और कानूनी प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास जारी रखा बाद में अधिकारी को हम लोगों ने एक पत्र दिया जिसमें लिखा गया कि "मैं मोहिनी कामवानी CrP.C. 43 Criminal Procedure Act 1973 के तहत जावेद अहमद को गिरफ्तार करने आई थी| जावेद अहमद जी ऑफिस में मौजूद नहीं थे हमें कोलाबा पुलिस के अधिकारी ACP श्री जुहिकर और विनोद सावंत मिले और उनसे बातचीत करने के बाद हमने उनसे जावेद अहमद जी के घर का पता माँगा जो उन्होंने नहीं दिया आखिर हमने उनसे कहा कि पोस्ट द्वारा पता भेजे जिससे हम उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर सकें" और सभी लोग वापिस आ गये मोहिनी जी ने तय किया है कि वे 4 दिन तक इन्तजार करेंगे उनसे बाद वापिस जावेद अहमद को गिरफ्तार करने पुलिस मुख्यालय पहुँचेगी।

लेकिन दुसरे दिन ही मोहिनी जी को, उसी बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए वाशी पुलिस इंस्पेक्टर लक्ष्मन काले ने एक नोटिस दे दिया है की आप हमें गिरफ्तार नहीं कर सकती? जो पुलिस वाले जेल में होने चाहियें बल्कि गैर कानूनी पुलिस की कुर्सी पर बैठे हैं वोह कैसे ऐसा नोटिस दे सकते हैं? यानी की पुलिस वालों द्वारा आम आदमी को गैर कानूनी गिरफ्तार करने का 'अधिकार' है लेकिन हमको कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए पुलिस वालों को कानूनी गिरफ्तार करने का संविधान द्वारा दिया गया अधिकार नहीं है? तो फिर यह "नागरिकी गिरफ्तारी का क़ानून सेक्शन 43 CrPC" वाला कानून संविधान से निकाल देना चाहिए, या सिर्फ दिखावे के लिए रखा हुआ है क्या जिससे आम नागरिक यही सोच-सोच कर खुश होता रहे कि हम भी पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार कर सकते हैं?

इसलिए दिनाक- 22 अगस्त, 2013 को मोहिनी और उनके बेटे ने वाशी पुलिस को इन 4 दोषी पुलिस के खिलाफ FIR दर्ज करने का पत्र दिया है जिसमे यह लिखकर दिया है की इन पुलिस वालों ने एक 79 वर्षीया स्वंत्रता सेनानी की विधवा पर इन सेक्शन के तहत संगीन अपराध किये हैं: IPC सेक्शन 466, 469, 471, 474, 167, 196, 220, 191, 192, 201, 120 (B), 199, 200 & 145 (2) Bombay Police Act व अन्य - अपराध यह हैं: आपराधिक षड्यन्त्र के तहत वाशी कोर्ट में झूठा केस, झूठा आरोप पत्र, झूठा कसमनामा जज से मुझे गैर कानूनी जेल में डालने का आर्डर पास कराने के लिए, बॉम्बे हाई कोर्ट में रिकार्ड की जालसाजी और मिथ्याकरण (फोर्जरी) पुलिस स्टेशन डायरी का पकड़ा जाना, बॉम्बे हाई कोर्ट में भी झूठा कसमनामा, सबूत, रिपोर्ट व जवाब दाखिल करना, सुप्रीम कोर्ट व बॉम्बे हाई कोर्ट की अवमानना, Perjury - इन सभी सेक्शन के तहत इन 4 दोषी पुलिस वालों के लिए जेल की सज़ा 3 से 7 साल की है।

यह पूरी प्रक्रिया यह दर्शाती है कि कोई भी पुलिस अधिकारी या प्रशासकीय अधिकारी अगर किसी भी वाजिब शिकायत-पत्र पर कार्यवाही नहीं करेगा तो उस शिकायत-पत्र कि बिनाह पर उस अधिकारी को अदालत द्वारा दोषी करार दिलवाया जा सकता है और बरखास्त भी करवाया जा सकता है। इसके बाद भी अगर प्रशासन दोषी के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता, तो आम जनता को यह कानूनी अधिकार प्राप्त है कि दोषी को जेल भिजवाकर उसपर कार्यवाही करवा सके।

अगर कोई प्रशासकीय या पुलिस अधिकारी आपके द्वारा भेजे गये पत्र के जवाब में यह कहता है कि "मेरे पास बहुत काम है, मैं अभी नहीं देख सकता" तो वह अधिकारी उस पद के लायक नहीं है। हम उसके खिलाफ Writ दाखिल करके उसका "Demotion" करवा सकते हैं क्योंकि जो भी अधिकारी अपनी कार्यक्षमता के बल पर उस पद पर सुशोभित होता है, अगर वह मना करता है तो इसका मतलब यह है कि उस अधिकारी में प्रतिभा व क्षमता नहीं है मामलों को सुलझाने की।

इस देश में लोकतंत्र के नाम पर जो कानूनी अधिकार दिये गये हैं वह किसी कानून के रखवालों की बपौती नहीं है बल्कि आम नागरिक का अधिकार है, हम अगर कानून का सहारा लें तो किसी भी भ्रष्ट नेता, अधिकारी या अपराधी को सज़ा दिला सकते हैं। ज़रूरत है संगठित होने की व शोषित होने के बजाये मामले को सामने लाकर अपराधियों व भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मामला उठाने की।

लेखक:

विश्राम सिंह यादव

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ